Tuesday, June 8, 2010

नई ग़ज़ल

तेरा हाथ तो मेरे हाथ में

न खिंज़ा में था, न बहार में

मुझे खुश-दिनों की तलाश थी

शबे-गम मिली तेरे प्यार में

कभी दिल-लुभावनी बात से

कभी रूप, रंग, सिंगार से

मैंने कोशिशें तो हज़ार की

न जगह मिली दिले-यार में

कई बार मुझको रुला गया

कई बार मिल के जुदा हुआ

जो मौत मिलनी थी इक दफा

मुझको मिली कई बार में

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