दोस्तों
कभी कभी दिल गहरी उदासी में डूबता उतराता भविष्य पर पड़ी गहरी धुंध में कुछ तलाशता है और अपनी तलाश में नाकाम होने पर खीज उठता है, हताश हो जाता है, रो पड़ता है, लेकिन हताशा के उन पलों में आंसुओं और आहों के बीच अगर दिल की चीखें शब्दों का जामा पहन लें तो रात की तन्हाई में कोरे कागज़ पर रचना के जन्म को रोका नहीं जा सकता। कम से कम मैं तो नहीं रोक पाती। तो आइये ऐसी ही परिस्थितियों में जन्मी अपनी एक रचना से आपको मिलवाती हूँ।
रस्ता नहीं, ना सामने कोई मुकाम हो
मौत आये के अब उम्र का किस्सा तमाम हो
आहट कोई आये तो दिल कांपता है यूँ
क्या जानिये के फिर किसी ग़म का पयाम हो
किस काम की दौलत भला किस काम का वो घर
जिसमे सुकून-ओ-चैन से जीना हराम हो
कोई बताये किस तरह वो नामे-खुदा ले
जिसकी हरेक सांस में दिलबर का नाम हो
ऐ दिल चल एक बार फिर उसकी गली चलें
शायद मेरे नसीब में उसका सलाम हो
कोई बताये किस तरह वो नामे-खुदा ले
ReplyDeleteजिसकी हरेक सांस में दिलबर का नाम हो अच्छी रचना !!!