तेरा हाथ तो मेरे हाथ में
न खिंज़ा में था, न बहार में
मुझे खुश-दिनों की तलाश थी
शबे-गम मिली तेरे प्यार में
कभी दिल-लुभावनी बात से
कभी रूप, रंग, सिंगार से
मैंने कोशिशें तो हज़ार की
न जगह मिली दिले-यार में
कई बार मुझको रुला गया
कई बार मिल के जुदा हुआ
जो मौत मिलनी थी इक दफा
मुझको मिली कई बार में
bahut khoob!vah!!
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