Sunday, July 18, 2010

माँयें कहाँ जायें?






















बदमाश बहुओं के तानो से रात दिन छटपटाती माँयें, घर की चारदीवारी में बहू के रहमोकरम पर दो वक़्त की रोटी गालियों के साथ खाने वाली माँयें, बीमारी की हालत में दवा और सेवा को तरसती माँयें, बहू के बच्चो की आया बन के ज़िन्दगी बिता रही माँयें सरकार, अदालत, पुलिस, समाज से पूछ रही हैं के वो न्याय और अपनों का प्यार पाने के लिए क्या करें, किसके आगे गुहार लगायें, कहाँ जायें? क्या कोई कानून उनकी मदद के लिए भी है या सारे के सारे सिर्फ बहुओं के लिए हैं? जो उनको उनकी ज़िन्दगी के आखिरी पड़ाव पर उनके ही घर से उनको बेदखल करके पूरे घर पर एकछत्र राज करने लिए आये दिन नई नई साजिशें रचती हैं और बुढापे-बीमारी में उन्हें अदालत के चक्कर लगवाने से भी बाज नहीं आती.

2 comments:

  1. ये भी आज का एक सच है।
    कल (19/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. बिलकुल सच कहा है |इत्तफाक से इसी विषय पर मैंने भी कल ही एक कहानी पोस्ट की है |
    http://shobhanaonline.blogspot.com/

    ReplyDelete