Sunday, July 18, 2010

मर्द को भी दर्द होता है









मुझे याद है के कभी मेरी माँ की अगर किसी बात पर पापा से लड़ाई हो जाती थी तो माँ कुछ दिन खामोश रहती थीं। पापा से बिलकुल बात नहीं करती थीं, यहाँ तक के उनके पास भी नहीं सोती थीं, हमारे कमरे में आ जाती थीं। पापा के खाने की थाली कभी मेरे हाथ तो कभी भाई के हाथ भिजवाती थीं। हम दोनों समझ जाते थे की खटपट हो गई है और अब कुछ दिन पापा को खाना देने की ड्यूटी हमारी लगेगी। जब हम पापा का खाना लेकर उनके कमरे में जाते थे तो वो मुह उठा कर हमारे पीछे काफी देर तक देखते रहते थे, के शायद माँ पीछे होगी। उनको ना पा कर उदास होकर सर झुकाए चुपचाप खाना खा लेते थे। हम छोटे थे लेकिन माँ के लिए पापा के दिल की तड़प शिद्दत से महसूस कर लेते थे। उधर माँ भी किचेन में उदास उदास चुपचाप खाना खा लेती थी। हमें आता देख जल्दी से आंसू पोछ लेती थी। पर उन दोनों के बीच ये गुस्सा, ये दूरी ३-४ दिन से ज्यादा नहीं चलती थी, पता चलता के चौथे रोज़ जब हम शाम को स्कूल से लौटे तो माँ चेहरे पर गज भर की मुस्कान चिपकाए किचेन में पकोड़ी तल रही हैं और पापा बार बार किचेन में आ आ कर उनको स्माइल दे रहे हैं। हम समझ जाते थे के सुलह हो गई है, अब हमारी खाना देने की ड्यूटी ख़तम। ये प्यारा प्यारा रूठना मनाना इसलिए संभव था क्योंकि उन दोनों के बीच तीसरा कोई नहीं पड़ता था। पर आज पति पत्नी के बीच पत्नी की माँ, बाप, भाई, भाभी, कानून, वकील, पुलिस, समाज और ना जाने कौन कौन आ गया है। पति पत्नी जब एक दूसरे से रूठ कर दूर जाते हैं तो फिर पास आने के लिए अपने दिल की नहीं सुन पाते, करीब आने के लिए अपने रास्ते खुद नहीं तलाश कर पाते, दूसरे लोग उनको सलाह देने लगते हैं, और दूसरों की सलाह के आगे उनके दिल की आवाज़ कहीं खो जाती है और दूरियां बढती चली जाती हैं। घर में पति पत्नी के बीच हुई छोटी छोटी मनमुटाव की बातों को जहां पहले खुद सुलझा लेते थे या फिर घर के बड़े बूढ़े दोनों को डाट डपट के सुलझा देते थे, वहां अब लड़कियों के हाथ में दहेज़ कानून और घरेलू हिंसा कानूनों का ऐसा खतरनाक हथियार थमा दिया गया है के अब वे ना तो पति का थोडा सा गुस्सा बर्दाश्त कर सकती हैं और न घर के बड़े बूढों का हस्तक्षेप। छोटी सी बात को तूल देकर वे दहेज़ कानूनों का दुरूपयोग करते हुए पति और उसके परिजनों को जेल तक भिजवाने में नहीं हिचकतीं। घरेलू हिंसा और दहेज़ प्रताड़ना कानून का ऐसा हथियार औरत के हाथ में दे दिया गया है के उसके आगे प्यार का हथियार कमजोर पड़ गया है। आज की औरत इन हथियारों को पाकर अपने आपको रणचंडी समझ रही है. वह भूल जाती है के कानून रुपी जिस हथियार का इस्तेमाल वो अपने पति पर कर रही है उससे वो उसका कम अपना नुक्सान ज्यादा कर रही है। आज भी भारतीय समाज में पति द्वारा त्यागी औरत को कोई अच्छी नज़र नहीं देखता है। अपने जिन शुभचिंतकों की सलाह और उकसावे में आकर वो अपने पति से हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाती है वही शुभचिंतक कुछ वक़्त बाद उस लड़की को बोझ समझने लगते हैं और उसकी ज़िन्दगी उसके मैके में नरक से भी बदतर हो जाती है.

1 comment:

  1. Bahut sunder lekh....Naseem ji, ek shandaar prastuti ke liye aapko badhai....

    ReplyDelete