प्यारे दोस्तों
दहेज़ प्रताड़ना क़ानून की धारा ४९८-ए के दुरूपयोग और उसके चलते निर्दोष लोगों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की साजिशों का पर्दाफाश करती मेरी रिपोर्ट '४९८-ए : पति, प्रताड़ना और पीड़ा' के इंडिया न्यूज़ पत्रिका में कवर स्टोरी के रूप में छपने के बाद ख़ुद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष गिरिजा व्यास जी ने माना है की महिलायें इस क़ानून का बेतरह दुरूपयोग कर रही हैं। ख़ुद महिला आयोग की अध्यक्ष का यह मान लेना इस बात के लिए काफ़ी है की अब इस क़ानून में बदलाव लाया जाना चाहिए। अब इसको जमानती बनाया जाना बेहद ज़रूरी हो गया है। गिरिजा व्यास जी ने कहा - महिलायें इस धारा का उपयोग ब्रम्हास्त्र के रूप में करें, ना के सामान्य मामलों में। महिला उत्पीडन, घरेलू हिंसा और दहेज़ प्रताड़ना में पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा ४९८-ए के तहत मुकदमा दर्ज करने से सम्बंधित दोनों परिवारों के बीच सम्बन्ध टूट जाने से संवाद के माध्यम से समस्या का समाधान होने की संभावनायें धूमिल हो जाती हैं।'
मुझे खुशी है की महिला आयोग की अध्यक्ष ने मेरी रिपोर्ट को गहराई से समझा और ये मानते हुए के महिलायें इस क़ानून का दुरूपयोग करती हैं, उन्होंने महिलाओं का पक्ष ना लेकर बहुत साफ़ सीधी और सही बात कही, लेकिन साथ ही उनका ये कहना के महिलायें इस क़ानून का उपयोग ब्रम्हास्त्र के रूप में करें, ये बात मुझे बुरी तरह खटक रही है। क़ानून इन्साफ दिलाने का माध्यम है, ना के कोई हथियार, जिसका प्रयोग किसी को मारने के लिए किया जाए। क़ानून की रौशनी में दोनों पक्षों की बातों को समझने के बाद न्याय होना चाहिए। दो दिलों के बीच अगर प्यार की बूँद भर भी बाकी हो तो उनको मिलाने की बात होनी चाहिए और अगर प्यार बिल्कुल ख़तम हो चुका है तो दोनों का अलग हो जाना ही बेहतर है। दो अजनबियों या दो दुश्मनों का एक कमरे में रहना कभी कभी बड़े हादसों का बायस बन जाता है।
एक मशहूर गीत की इन लाइनों के साथ मैं अपनी बात ख़तम करती हूँ-
तारुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो एक बार फ़िर से अजनबी बन जायें हम दोनों
Tuesday, September 8, 2009
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