Tuesday, August 4, 2009


प्रिय दोस्तों

कुछ लोग मोहब्बत को व्यापार समझते हैं।

दुनिया को खिलौनों का बाज़ार समझते हैं।

ये गाना बहुत पुराना है। लोग सुनते हैं, साथ गुनगुना लेते हैं और कुछ देर में भूल जाते हैं। आज सुबह मैंने भी सुना और इस गाने की ये दो लाइनें शाम तक मेरे कानों में गूंजती रहीं। कितनी सच्चाई है इन लाइनों में। भावनाओ से खेलना बहुतों के लिए बेहद आसान है। स्वार्थ के बाज़ारों में अपनी पसंद की चीजें खरीदते और मूल्य चुकाते ये लोग भूल जाते हैं के कुछ चीज़ों, कुछ लोगों, कुछ बातों और सच्ची भावनाओ का मूल्य कभी कोई नही चुका सकता। चलिए आपको अपनी एक ग़ज़ल की कुछ लाइनें सुनाती हूँ। दरिया के शांत पानी पर पत्थर मार कर मैं किनारे बैठी हूँ अब आप दरिया की लहरें गिनें या डूब कर गहराई ढूँढें आपकी मर्ज़ी।


राहे-मोहब्बत तपती भूमि, जिस्मो-जान पिघलते हैं

आज वफ़ा के मारे राही अंगारों पर चलते हैं।

मेरे मन के नील गगन का रंग कभी ना बदलेगा

देखें तेरे रूप के बादल कितने रंग बदलते हैं।

देख रहे हैं सांझ-सवेरे दिलवालों की बस्ती से

अरमानों की लाशें ले कर कितने लोग निकलते हैं।

खुशियों के परबत पर जब भी गम का सूरज उगता है

आंसू बन कर फ़िर आंखों से कितने ख्वाब पिघलते हैं.

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