Sunday, August 2, 2009


दोस्तों एक शायर के लिए उसकी हर नयी ग़ज़ल नए कोमल और खूबसूरत बच्चे की तरह होती है। बहुत सी गज़लें लिख चुकी हूँ। धीरे धीरे आपको सब सुनाउंगी और चाहूंगी के आपका दुलार मेरी हर ग़ज़ल को मिले। कभी कभी अपना शहर अपने लोग जिन्हें कहीं पीछे छोड़ आए बहुत याद आते हैं और जब याद आते हैं तो कुछ यूँ टपकती है तड़प -


उसकी गली उसका शहर

मुझे याद है, मुझे याद है

मेरी रहगुज़र पे थमी हुई

उसकी नज़र मुझे याद है

उसकी खुशी के वास्ते

रुखसत हुए थे शहर से हम

पर धड़कने वहीँ रह गई

जिस दम उठे उस दर से हम

होकर जुदा फ़िर किस कदर

फिरे दर-बदर मुझे याद है

उसकी गली उसका शहर
मुझे याद है, मुझे याद है

दो जिस्म तो नही मिल सके

दो आत्मायें मिली रहीं

कोई फासला भी नही रहा

और दूरियां भी बनी रहीं

वो रात-ओ-दिन तेरे प्यार का

लंबा सफर मुझे याद है

उसकी गली उसका शहर
मुझे याद है, मुझे याद

मेरी रहगुज़र पे थमी हुई
उसकी नज़र मुझे याद है

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