Sunday, December 26, 2010

छुटपुट

दिल पर तेरी यादों का पहरा रात भर
फिरता रहा आँखों में चेहरा रात भर
सिमटी रही घूंघट में दुल्हन इसतरह
उतरा नहीं दूल्हे का सेहरा रात भर



तुम बहुत दूर सही ख्वाब में आते रहना
अपने होने का यूँ अहसास दिलाते रहना
अपनी नज़रों के दायरे में बाँध कर मुझको
इस ज़माने की निगाहों से बचाते रहना


नाम अल्लाह का लेने लगे हिन्दू की ज़ुबान
हर मुसलमान को मिल जाएगा वेदों में कुरान
आओ कुछ ऐसे इबादत के तरीके बदलें
आज मस्जिद में आरती हो तो मंदिर में अज़ान

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