Sunday, November 22, 2009

तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है


वह सामने बैठा था... उसकी खूबसूरत बादामी आंखों में किसी को भी अपनी तरफ़ खींच लेने की ऐसी कशिश थी के निगाहें बार-बार उन आंखों पर जाकर टिक जाती थीं। मन बार-बार उस झील में झाँकने को मजबूर हो जाता। उन आंखों पर काली घनेरी पलकें कभी झप्प से गिरतीं, कभी दप्प से उठतीं, एक बहुत पुराने गीत के बोलों को जीवंत कर रही थीं - 'ये उठे सुबह चले, ये झुके शाम ढले, मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों तले... तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है...' पर वो खूबसूरत आंखें आख़िर दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में क्या ढूंढ रही थीं? वह जिस डॉक्टर के इंतज़ार में उनके केबिन के सामने बेंच पर बैठा था, वह एम्स के जाने माने आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर तितियल का केबिन था। आँख के डॉक्टर... ? पर जीवन से भरी इन आंखों को आख़िर किसी डॉक्टर की क्या ज़रूरत? ये आंखें तो किसी के भी जीवन को रौशनी से भर देने की ताकत रखती हैं। मन ये जानने को व्याकुल हो उठा के वह खूबसूरत आंखें आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर तितियल के दरवाज़े पर क्यों टिकी हैं?

'आपकी आंखों में कोई प्रोब्लम है?'

'जी...' उसकी जुबां से निकले संछिप्त जवाब से पहले उन आंखों ने मुझे जवाब दिया और घनेरी पलकों ने झुक कर झील को ढँक लिया।

'क्या प्रोब्लम है? आपकी आंखें तो बिल्कुल ठीक दिख रही हैं?' मैंने पूछा।

'मुझे नाईट ब्लाइंडनेस है... रात को ठीक से दिखाई नही देता... दिन में भी कभी-कभी परेशानी हो जाती है।'

दिल पर जैसे किसी ने बड़ा सा पत्थर रख दिया। पल भर को हम दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया। समझ में नही आया के इन खूबसूरत आंखों के मालिक से आगे क्या सवाल करूँ? मन सोचने लगा - क्या ईश्वर इन खूबसूरत आंखों को गढ़ने में इतना तल्लीन हो गया था के इनमें रौशनी भरना ही भूल गया?

'यह बीमारी कब से है?'

'शायद बचपन से थी, पता नही चली। जब कॉलेज में पंहुचा और मोटर साइकिल चलाने लगा तब भी मालूम नही चला। कुछ साल पहले जब बिसनेस संभाला तो रात को अक्सर घर लौटने में देरी हो जाती थी। रात को ड्राइव कर के घर आते समय रास्ता धुंधला दिखाई देता, कभी सामने से आँख पर रौशनी पड़े तो कुछ देर के लिए जैसे ब्लैकआउट हो जाता था। तब लगा के कुछ गड़बड़ है। डॉक्टर को दिखाया तो मालूम पड़ा के मुझे रतोंधी है।'

यानी शाम होने के बाद आपको बिल्कुल दिखाई नही देता?'

'अभी तो धुंधला-धुंधला दीखता है, पर मेरी बीमारी बढ़ रही है। इसका कोई इलाज भी नही है। हो सकता है कुछ साल बाद दिखाई देना बंद ही हो जाए।'

जुबां उसकी बात सुन कर खामोश हो गई और मन ने तड़प कर कहा - 'हे ईश्वर, जब तेरी गढ़ी हुई इन आंखों में रौशनी ही ना होगी तो क्या तेरी बनाई यह खूबसूरत कायनात इनके लिए बेमानी न हो जायेगी? पल भर को मैंने अपनी आंखें बंद करके अंधेरे में कुछ देखने की कोशिश की। कुछ नज़र नही आया। मैंने घबरा कर अपनी आंखें खोल दी। सोचा, 'कुछ देर का अँधेरा बर्दाश्त नहीं है, अगर ये अँधेरा हमेशा के लिए तारी हो जाये, तो ज़िन्दगी के सारे रंग, सभी खुशियाँ कैसी स्याह हो जाएँगी?'

मैंने सामने नज़र डाली... पल भर उन आंखों में झाँक कर देखा... वह पहले से भी ज्यादा प्यारी हो गई थीं... झील कुछ और ज्यादा खूबसूरत नज़र आने लगी ... कुछ और ज्यादा चमकदार...कुछ और भी ज्यादा गहरी... कितने खूबसूरत सपने तैर रहे थे उसमे... कितनी रंग बिरंगी थीं उसकी लहरें... मन ने कहा - 'अब इस झील से दूर ना जा... डूब जा इनमे...'

और मैं डूब गई... बहुत गहरे उतरते चली गई ... इस दुआ के साथ के झील पर अँधेरा कभी तारी न हो...

तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है...? प्यारे दोस्तों, उन झील से गहरी आँखों की पूरी दास्ताँ जाननी है तो इंडिया न्यूज़ पढ़िये ...

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