Wednesday, August 5, 2009

जो भुला दिया, सो भुला दिया



कल रात मैंने अपने दिल से पूछा, "क्यों रे, तेरी उदासी का सबब क्या है?" वो कुछ न बोला। चुपचाप मुंह फेर कर बैठ गया। मैंने कहा, "बता ना, देख, सारी दुनिया रंगीनियों में डूबी है, तू क्यों नहीं उनके साथ शामिल होता है?" वो फ़िर खामोश, कुछ न बोला। मैंने उसपर हाथ रक्खा, वो चुपके-चुपके सिसक रहा था। मैं बहुत देर तक पूछती रही के आख़िर क्या हुआ? वो बहुत देर तक रोता रहा। फ़िर आधी रात को अचानक तमतमा कर उठा, अपने आंसू पोछे और बोला, "बड़ा शौक है न तुझे मेरे बारे में जानने का? तू पत्रकार की जात, तुझे मसाला चाहिए न, चल, निकाल कलम, लिख मेरी कहानी, बता दुनिया को और लूट वाहवाही।" अब मैं खामोश, सन्न। वो दहाडा, "उठा न अपना कलम, निकाल कागज़ और जो आज मैं कहता हूँ लिख कर उस तक पहुँचा दे।" मैं उसे देखती रही, हैरान सी। अब उसकी आवाज़ भीग गई, वो भीगी आंखों से मेरी तरफ़ देख कर बोला, "लिख न।" मैंने कलम निकाल लिया। उसने बोलना शुरू किया और आधी रात को उसने मुझसे जो कुछ कहा वो कुछ यूं था -


तुझे दिल से अपने निकाल कर


मैंने ख्वाहिशों को सुला दिया


तू लौट कर भी ना आ सके


मैंने आशियाँ ही जला दिया


चुभने लगे थे आँख में


जो ख्वाब तूने दिखाए थे


ये तो शुक्र है के सहर ने फ़िर


मुझे असलियत से मिला दिया


तेरा प्यार था के फरेब था


मुझे आज तक ना पता चला


कभी रो दिए तो हंसा दिया


कभी हँसते हँसते रुला दिया


कभी बेपनाह मोहब्बतें


कभी बेबसी की कहानियाँ


कभी मौत के दर ले गया


कभी ज़िन्दगी से मिला दिया


ये ना सोचना के मैं रोऊंगी


पछताऊँगी तुम्हें छोड़ कर


मुझे गम नहीं किसी बात का


जो भुला दिया, सो भुला दिया

1 comment:

  1. Very well composed. I especially liked the last two lines, "mujhe gham nahi kisi baat ka,Jo bhula diya wo bhula diya". Its best to leave the past behind and move on.

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