Friday, August 28, 2009



प्यारे दोस्तों बहुत दिन हुए आप सब से बातें किए हुए। क्या करूँ काम की अधिकता से वक्त ही नही मिल पाया, चलिए, आज आपको पहले अपनी एक ग़ज़ल सुनाती हूँ फ़िर काम करुँगी।


कोई रहता है आसपास मेरे


और धड़कता है दिल के साथ मेरे


उसको अपना भी कह नही सकते


कितने मजबूर ये हालात मेरे


चाँद तारों को पकड़ना चाहा


गर्दे-जिल्लत में सने हाथ मेरे


कुछ नही जाएगा इस दुनिया से


उसकी चाहत के सिवा साथ मेरे


मैं तो खुश हूँ के इस ज़माने पर


चोट करते हैं ये अल्फाज़ मेरे

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