Saturday, November 13, 2010

अनचाहा सा अपना

उसके लिए ज़िन्दगी
खुला
आसमान
बे-छोर, बे-बंधन, बे-छत, बे-दीवार
खेलो
-खाओ, पियो-जियो
मेरे लिए ज़िन्दगी
कल्पना
नहीं, नशा नहीं, स्वप्न नहीं
सिर्फ
हकीकत
मुश्किलों
का सामना करती
जूझती
, लडती, आगे बढती
बन्धनों
के साथ, दायरों के साथ
वो
समझौतों से परे, मैं समझौतों के साथ
दोनों
विपरीत, दोनों भिन्न
ख़याल
भिन्न, व्यवहार भिन्न, परिस्थितियां भिन्न
फिर
भी
साथ
चलने की धुन
तो

नफरत
- मोहब्बत
धमकी
- चुम्बन
विश्वास
- अविश्वास
दूरी
- नजदीकी
सपने
- हकीकत
सब
एक साथ
भर
लिए
विवाह
रुपी बोतल में
और
चल पड़े साथ
लेकिन
कितनी दूर?
कितनी
देर?
अचानक
एक रात
हो
गया विस्फोट
छन्
से टूटी बोतल
बिखर
गईं किरचें
हैरान

अवाक

मैं भी
, वो भी
संभाल पाने का गुस्सा
टूटने
का दुख लिए
ख़ामोशी
से
वह
उड़ गया सिगरेट के धुयें सा
और
मैं
सिमट
गई अपने दायरे में
इससे
पहले के बिखरी किरचें जायें
घायल
कर दें पूरा वजूद
बटोरी
किरचें
फेंकी
और साफ़ कर दी
दिल
की ज़मी
पर
एक किरच
शायद
गई है कहीं
दिखती
नहीं लेकिन
रात
की तन्हाई में
बार
बार चुभती है
तकलीफ
देती है
रुलाती
है
आंसू
बन कर
गालों
पर बहते हुए
हर
रात
उसकी
नमकीन यादों से
होंठों
को कर जाती है

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